अगर शिक्षा को संकीर्ण और आर्थिक नफा- नुकसान के नजरिये से देखें तो यह एक सही निर्णय है। अगर शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान है, तो भी यह एक अच्छा निर्णय कहा जाएगा। परन्तु यदि शिक्षा को उसके वृस्तृत रूप में और शिक्षाविदों के नजरिये से देखेंगे तो यह एक गलत निर्णय है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है, जिसमें बच्चे का शारीरिक, मानसिक व संवेगात्मक विकास सम्मिलित है।

शिक्षा का वास्तविक अर्थ है—बच्चे को जीवन के हर पहलू के लिए तैयार करना है। जिसमें उसकी तार्किक सोच, रचनात्मकता, शारीरिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संतुलन का विकास सम्मिलित है। यदि शिक्षा को केवल अकादमिक उपलब्धियों तक सीमित कर दिया जाएगा और शारीरिक व भावनात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाएगा, तो यह एक अधूरी और असंतुलित शिक्षा मानी जाएगी।
शारीरिक शिक्षा बच्चों के समग्र विकास का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी है, बल्कि उनके व्यक्तित्व, अनुशासन, और मानसिक संतुलन को भी मजबूती प्रदान करती है। इसके बिना शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करना संभव नहीं है। यह समझने की आवश्यकता है कि शारीरिक शिक्षा केवल ‘मजेदार गतिविधि’ नहीं है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास का आवश्यक हिस्सा है। सरकार को चाहिए वह शारीरिक शिक्षा के पदों को समाप्त न करके, खेल और शारीरिक शिक्षा को एक आतिरिक्त गतिविधि के रूप न देखकर उसको पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए।
राज्य में नई शिक्षा नीति लागू कर दी गयी है। और नई शिक्षा नीति 2020 भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानती है और अप्रत्यक्ष रूप से फिट इंडिया मूवमेंट जैसे अभियानों के उद्देश्यों को अपनाने पर जोर देती है। एक तरफ सरकार नई शिक्षा नीति लागू कर रही है और फिट इंडिया मूवमेंट चला रही है। दूसरी तरफ स्कूलों से शारीरिक शिक्षा के पदों को समाप्त कर रही है। सरकार का यह कदम अपनी ही नीतियों का विरोधाभाषी है।
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(किसी का सहमत होना अनिवार्य नहीं है। पोस्ट मात्र इस संबंध में चर्चा-परिचर्चा हेतु है। सुझाव व विश्लेषण गलत भी हो सकते हैं, यह अंतिम सत्य नहीं हैं।)