हरियाणा की नीति आ रेली है…।

-“ये सर्किट, फोन क्यों नहीं उठा रेला है?”
–“कौन है बे।”
– “तेरा बाप।”
— “अरे, भाई.. भाई।… बोलो भाई, कोई इमरजेंसी है क्या?”
– “ये सर्किट, तू जल्दी मुझे परेड ग्राउंड में मिल।”
–“भाई, तुम फ़ौज में भर्ती हो गए, तुमने बताया नहीं।”
-“नहीं रे, बापू के पार्क, बोले तो गाँधी पार्क के बाजू में जो परेड मैदान है न, उसमें मिल।”
— “अभी पहुँचता हूँ भाई।”
………….

— “क्यों, क्या हुआ भाई? कुछ टेंशन-वेंशन है? टेंशन नहीं लेने का, मैं हूँ न भाई, बोलो किसको ऊपर भेजने का है।”
– “नहीं रे, ऐसा कुछ नहीं। ये सर्किट, हरियाणा से ‘नीति’ आ रेली है।”
— “क्या भाई, हरियाणा से ‘नीति’ आ रेली है…? फिर तो बड़ा मजा आएगा भाई। पर भाई….जाह्नवी भाभी को बुरा लगेगा।”
– “क्यों रे? जाह्नवी को नीति से क्या लेना देना?”
— “लेना देना है भाई, अगर जाह्नवी भाभी ने आपको नीति के साथ देख लिया तो?”
– “ये सर्किट, एक लापा दूँगा न, फिर पता चलेगा। अरे, जैसा तू सोच रिया न, वैसाइच कुछ नहीं रे।”
–“तो भाई, एक बात पूछूँ? तुम तो बापू के बहुत बड़े फैन हो, बापू तुमसे डायरेक्ट बात करता है, आपको पता होगा कि बापू की शादी किस उम्र में हुयी थी?
-“ये सर्किट, यह भी कोई सवाल हुआ? जब बापू 13 साल के थे, तब उनके घर वालों ने उनकी शादी बना डाली थी।”
— “यही तो भाई, मैं साला 26 का हो गया, बापू की शादी की उम्र से डबल। आप भी जाह्नवी भाभी के साथ सेटल हो जाओगे। मेरा क्या होगा? भाई, ये हरियाणा से जो नीति आ रही है न, उससे मेरी सेटिंग करवाओ न?”

-“अरे सर्किट, तुझे एक लापा देना ही पड़ेगा। ये नीति कोई लड़की नहीं है रे। यह उत्तरवन में टीचर लोगों के वास्ते ट्रांसफर पॉलिसी है।”

–“पहले ही हिन्दी में बोलना था न भाई… ‘पॉलिसी’। पर भाई, क्या पहले वहाँ टीचर लोगों के ट्रांसफर नहीं होते थे?”

– “होते थे न।”

–“तुम तो बोले कि नीति अब हरियाणा से आ रेली है? बिना नीति के कैसे होते थे फिर?”

-“ये तो अपुन को नहीं मालूम।”

–“भाई, बापू से पूछो न? वह बता देगा।”

(—“बोलो कि पहले वहाँ कोई नीति नहीं थी। राजा और बजीर के रिश्तेदारों का ही ट्रांसफर हुआ करते थे। इससे आम शिक्षकों में रोष पैदा हुआ। फिर एक नीति बनाई गयी। पर उसमें भी रसूख दारों को ही लाभ मिला। फिर दबाब में कानून बनाया। उसका भी पालन नहीं हुआ। अब फिर नीति आ रही है।”)

-“ये सर्किट सुन! बापू बोला कि पहले यहाँ जुगाड़ नीति थी। राजा और बजीर से जिनका जुगाड़ होता था, उनका ही ट्रांसफर होने को मांगता था। फिर कानून आया, पर उसको भी किसी ने नहीं पूछा। अब फिर नीति आ रेली है।”

— “पर भाई, मेरी समझ में नहीं आ रेला है कि नीति ज्यादा बड़ी होती है या कानून?”

–“बापू……….?”

(–“बोलो कि नीति और कानून से बड़ी नीयत होती है। यदि नीयत में ही खोट हो, तब कुछ भी बड़ा और छोटा नहीं होता। पर नीति और कानून में, कानून बड़ा होता है। कानून सबके लिए बाध्यकारी होता है। कानून के सामने राजा और रंक दोनों समान होते हैं। नीति तो राजा की दासी होती है।”)

-“ये सर्किट, बापू बोला कि जिसकी नीयत खोटी होती है न, उसके लिए कुछ भी बड़ा नहीं होता। दोनों में कानून को बड़ा मानने का।”

–“मेरी खोपड़ी में घुस गया भाई। बोले तो अभी जो पेपर लीक हुए, तो उसको रोकने के वास्ते ‘नकल विरोधी कानून बना है, नकल विरोधी नीति नहीं?”…..

“पर भाई, एक बात मेरी समझ में नहीं आयी, हम तो हेड़े हैं, फिर भी यह बात हमारी समझ आ गयी। पर यह मास्टर लोग और इनके नेता तो पढ़े लिखे होते हैं। इनको कानून और नीति में, अंतर पता नहीं है क्या? इनकी समझ क्यों नहीं आ रहा कि क़ानून बड़ा है, उसको खल्लास करना बराबर नहीं है। यह इसका विरोध क्यों नहीं करते?

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