उत्तरवन में एक बार फिर बेफालतू बात पर हंगामा खड़ा हो गया है। सुना है एक खरगोश जो उत्तरवन में शिक्षक है, उसने जंगल की व्यवस्था के सामने आइना रख दिया। ऐसा करने पर उसको निलंबित कर दिया गया है। ठीक ही तो किया? अब कोई उस खरगोश को समझाये कि भाई जंगल में आइने का क्या काम? पता नहीं कैसे-कैसे खरगोश शिक्षक बन जाते हैं। जंगल में हाथियों के साथ रह रहे हैं। उनके पास से न जाने कितनी बार गुजरे होंगे। पास से न सही दूर से तो देखा ही होगा कि ‘हाथी के खाने के दाँत और दिखाने के दाँत’ अलग-अलग होते हैं। ठीक है जी जंगलतन्त्र को समाप्त हुए 75 साल हो गए हैं या 100 साल भी हो जाँय। तब भी जंगल के प्राकृतिक नियम तो नहीं बदलेंगे न? जंगल के कुछ अनकहे नियम होते हैं। उन नियमों का सम्मान करना सीखिए। आखिर वह हमारी […]
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प्रधानाचार्य सीधी भर्ती/पदोन्नति – भाग -4
आज प्रधानाचार्य सीमित सीधी भर्ती को एक और कोण से देखने की कोशिश करते हैं। वर्ष 2022 की नियमावली से पहले प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति हेतु क्या योग्यता थी?वर्ष 2022 से पूर्व प्रधानाचार्य की नियुक्ति हेतु ‘उत्तराँचल शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग ) सेवा नियमावली, 2006 लागू थी। इस नियमावली में प्रधानाचार्य का पद, प्रधानाध्यापक और उप-प्रधानाचार्य पद पर जिन्होंने पांच वर्ष की सेवा पूर्ण कर ली हो, की चयन समिति के माध्यम से पदोन्नति द्वारा भरे जाने का प्रावधान है।…….उक्त नियमावली के अनुसार दो बातें स्पष्ट हैं कि-1- प्रधानाचार्य पद हेतु योग्यता प्रधानाध्यापक और उप-प्रधानाचार्य है। प्रवक्ता नहीं है।2- पद लोक सेवा आयोग का नहीं है।……..विश्लेषण – प्रधानाचार्य पद हेतु योग्यता प्रधानाध्यापक और उप-प्रधानाचार्य इसलिए रखी गयी है क्योंकि यह पद प्रशासनिक प्रकृति के हैं। कुछ वर्ष छोटी इकाई में प्रशासनिक अनुभव प्राप्त करने के बाद वह प्रधानाचार्य के पद पर बेहतर कार्य कर सकेंगे।…….पदोन्नति का प्रावधान भी ‘चयन […]
एक सफल आंदोलन का अल्प विराम।
राजकीय शिक्षक संघ द्वारा एक सूत्रीय माँग “सीमित विभागीय भर्ती” को निरस्त करने के लिए आयोजित आंदोलन को फिलहाल पहले चरण की सफलता के बाद अल्प विराम दे दिया गया। इस पर पूर्ण विराम लगाने की जिम्मेदारी अब विभाग व सरकार के पाले में है।……..उत्तराखंड में प्रधानाचार्य का पद पूर्व में पदोन्नति का पद था। इसको सरकार द्वारा बिना राजकीय शिक्षक संघ से विचार विमर्श किए हुए बदल दिया गया। 50% पदोन्नति के पद हटा कर “सीमित विभागीय भर्ती द्वारा भरने के लिए लोक सेवा आयोग को दे दिए। भर्ती के लिए आवेदन की शर्तें इस प्रकार तय की गयी कि लगभग 5% शिक्षक ही आवेदन के पात्र बन पाए। 95% शिक्षक इस पूरी प्रक्रिया से ही बाहर हो गए। सरकार द्वारा जो नई नियमावली लायी गयी वह ‘अवसर की समानता’ के सिद्धांत के अनुरूप नहीं थी। संघ द्वारा सरकार से इस नियमावली को वापस लिए जाने का अनुरोध किया […]
प्रधानाचार्य सीधी भर्ती/पदोन्नति – भाग -3
राज्य में सरकारी कर्मचारियों की जेष्ठता निर्धारण के लिए ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ प्रभावी है। विभाग को नियमावली के अनुसार जेष्ठता का निर्धारण करना चाहिए था। यदि विभाग ने नियमावली के अनुसार जेष्ठता का निर्धारण किया है तो कोर्ट में अपनी बात रखे, उन आधारों और नियमावली, शासनादेशों या तर्कों को कोर्ट में प्रस्तुत करे। जिसके आधार पर उन्होंने वरिष्ठता का निर्धारण किया। जिससे मामले का स्थायी हल निकल सके। यदि पूर्व में जेष्ठता निर्धारण में त्रुटि हुई है। तो अब सही करके पुनः वरिष्ठता सूचि जारी की जा सकती है। यदि नियमावली में कोई कानूनी त्रुटि है या सरकार को लगता है कि वरिष्ठता नियमावली में संसोधन की आवश्यकता है तो ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ को सरकार संसोधित कर सकती है।………शिक्षकों के सवाल हैं कि-1- वरिष्ठत्ता का निर्धारण विभाग व सरकार के स्तर पर होना है। इस तुरन्त इस पर कार्यवाही होनी चाहिए।…..2- राज्य में […]
प्रधानाचार्य सीधी भर्ती/पदोन्नति – भाग -2
प्रश्न – 1- क्या प्रधानाचार्य बनने के लिए जो सीमित विभागीय सीधी भर्ती आयोजित की जा रही है वह गलत है?उत्तर – नहीं।…..प्रश्न -2- क्या प्रधानाचार्य बनने के लिए पदोन्नति की प्रक्रिया अपनाना गलत है?उत्तर – नहीं’।……..जब किसी काम को करने के लिए एक से अधिक तरीके हों और सभी तरीके सही (नैतिक) हों। ऐसे में ऐथिक्स का उपयोग किया जाता है। एथिक्स के अनुसार, उस तरीके का चुनाव करना चाहिए जो अधिक नैतिक, पारदर्शी और सार्वजनिक भलाई के लिए हो। (जो साथी सिविल सेवा की ऐथिक्स की तैयारी कर रहे होंगे। वह इसको आसानी से कोरिलेट कर पाएंगे।)इसके लिए निम्नलिखित बातों पर विचार किया जाना चाहिए – 1- लाभ और हानि का विश्लेषण- उस तरीके को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो अधिक लोगों को लाभ पहुंचाए। इसका उद्देश्य समाज की अधिकतम भलाई करना होता है।……2- निष्पक्षता और समानता- ऐसा तरीका चुना जाना चाहिए जो निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों […]