
अखबार में छपी एक खबर के अनुसार उत्तराखंड में अब स्कूलों के समय को एक जैसा करने पर विचार किया जा रहा है। स्कूलों के समय में परिवर्तन करने से पहले कुछ बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है –
1- स्थानीय अनुकूलता – शिक्षण में छात्र, अभिभावक और शिक्षक का त्रिकोण सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। कोई भी समय निर्धारित किया जाय, उसमें इनका कम्फर्ट सबसे महत्वपूर्ण है। क्या इन तीनों में से किसी ने समय सारिणी में बदलाव की माँग की है? अगर हाँ, तो तो अवश्य इस बारे में विचार किये जाने की जरूरत है। अगर नहीं, तो केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से विद्यालयों के समय में परिवर्तन करना उचित नहीं है।जब मौजूदा समय-सारिणी लंबे समय से काम कर रही है और उसमें बदलाव की कोई विशेष माँग नहीं आई है, तो इसका मतलब है कि यह समय-सारिणी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुकूल है। इसमें बदलाव से उल्टा बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए असुविधा ही पैदा होगी।
2- शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव – क्या इससे शिक्षा की गुणवत्ता में कोई क्रन्तिकारी बदलाव आएगा ? यह दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है जिस पर विचार करने की जरूरत है। समय को पूरे प्रदेश में एक जैसा करने से बच्चों की शिक्षा पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी तक कोई प्रमाण भी नहीं है। अभी तक ऐसी कोई रिसर्च भी सामने नहीं आयी है जो यह कहती हो कि पूरे प्रदेश में समय एक जैसा करने से, शिक्षा की गुणवत्ता में कोई प्रत्यक्ष या महत्वपूर्ण बदलाव आ जाएगा। समय की एकरूपता से बच्चों की सीखने की क्षमता या शिक्षकों की कार्यक्षमता में कोई विशेष बदलाव नहीं होगा।
3- जलवायु और मौसम की निरंतरता – उत्तराखंड की जलवायु और मौसम में बदलाव तो आया है परन्तु इतना भी परिवर्तन नहीं आया कि समय सारिणी में परिवर्तन की दिशा में विचार करने की जरूरत पड़े। दशकों से सर्दियों और गर्मियों में जो समय-सारिणी चल रही है, वह पहले से ही मौसम के अनुसार तय की गई है। इसे एक समान करने से ऊंचाई वाले ठंडे क्षेत्रों में जहां अधिक ठंड पड़ती है, वहां बच्चों को सुबह जल्दी स्कूल पहुंचने में कठिनाई होगी। जबकि मैदानी इलाकों में गर्मी में देर तक स्कूल चलाने से परेशानी होगी। मौजूदा व्यवस्था ने भौगोलिक और मौसमी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलन बनाए रखा है, और इसका पालन स्थानीय समुदाय भी कर रहा है। इसलिए समय में परिवर्तन करना उचित प्रतीत नहीं होता है।
4- NCF 2005 के समय सारिणी को लेकर प्रावधान – NCF 2005 में स्कूल की समय सारणी को लेकर जो प्रावधान हैं वह मेरे विचार में व्यवहारिक व छात्र केंद्रित हैं। NCF 2005 समय सारिणी को लचीला बनाने की बात करता है। वह समय सारणी के विकेंद्रीकरण की बात करता है। स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर समय सारिणी को लचीला बनाये रखने की बात करता है। यह एक सही विचार है। देहरादून, हरिद्वार और चमोली, उत्तरकाशी की परिस्थियों में बहुत अधिक अंतर है। एक जिले के भीतर भी परिस्थियों में काफी अंतर देखने को मिलता है। इसलिए व्यवहारिक दृष्टिकोण से भी समय सारिणी का केंद्रीकरण उचित प्रतीत नहीं होता है।
निष्कर्ष – समय की एकरूपता प्रशासनिक दृष्टिकोण से सही हो सकती है। परन्तु शिक्षण के दृष्टिकोण से सही नहीं है। शिक्षा सुधार का असली उद्देश्य छात्रों को उनके परिवेश और जरूरतों के अनुसार बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराना है। बेहतर यही होगा कि शिक्षा विभाग स्थानीय परिस्थितियों का सम्मान करते हुए स्कूल के समय में लचीलापन बनाए रखे और इसके बजाय शिक्षण में सुधार, संसाधनों की उपलब्धता और शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने पर को अपनी प्राथमिकता बनाए। स्कूल का समय पूरे प्रदेश में एक जैसा करना भविष्य में एक दिखावे का और अनावश्यक परिवर्तन साबित हो सकता है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सकारात्मक प्रभाव भी अभी तक प्रमाणित नहीं है।
ऐसी स्थिति में प्रदेश की विविधता और स्थानीय जरूरतों का सम्मान करते हुए वर्तमान व्यवस्था को बनाए रखना ही अधिक उपयुक्त और तर्कसंगत कदम होगा।