आज एक खबर छपी है जिसमें लिखा है कि शिक्षकों की गोपनीय आख्या लिखते समय यह देखा जाएगा कि शिक्षक छात्रों को नियमित गृह कार्य देते हैं या नहीं और उसका नियमित मूल्यांकन करते हैं कि नहीं। अगर यह खबर सही है, तो एक शिक्षक के रूप में मुझे इस खबर ने थोड़ा सोचने पर मजबूर कर दिया। आखिर यह सलाह आयी कहाँ से होगी? हम जब शिक्षक, छात्र व शिक्षा के अन्य हितधारकों के लिए कोई नियम या कानून बनाते हैं उसको समग्रता के साथ और पाठ्यचर्या, शिक्षा नीति, पीडागोजी आदि को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए।
सरकार के इस निर्णय से बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ना तय है। क्योंकि हर अध्यापक अपने को अच्छे अंक मिलने के लालच में बच्चों को अधिक से अधिक होम वर्क देने की कोशिश करेगा। जबकि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 व नई शिक्षा नीति सैद्धांतिक रूप से गृह कार्य को कम करने व रुचिकर बनाने पर जोर देती है। इस संदर्भ में, शिक्षक की गोपनीय आख्या में गृह कार्य को भी आधार बनाने का प्रावधान न केवल इन नीतियों के उद्देश्यों के विपरीत है, बल्कि बच्चों के अधिगम और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। सरकार के इस निर्णय से बच्चों के लिए पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ बढ़ना तय है। यह निर्णय बच्चों के अधिगम को आनन्द दायक की जगह और नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। ऐसा मुझे लगता है।

एक छात्र के पास कक्षा 6 से 8 तक 09 विषय व कक्षा 9 से 12 तक 5-6 विषय होते हैं। अगर प्रत्येक शिक्षक अपने विषय के लिए आधे घंटे का गृह कार्य देता है, तो जाहिर है कि बच्चों का लगभग सारा समय गृह कार्य पूरा करने में ही चला जाएगा। यह स्थिति ग्रामीण और शहरी दोनों पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए कठिन हो सकती है। आइए इस पर विस्तार से विचार करते हैं-
1– ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों की चुनौती — ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को अक्सर घरेलू कार्यों में मदद करनी होती है, जैसे कि खेतों में काम करना, मवेशियों की देखभाल करना, पानी लाना, आदि। उनके पास पढ़ाई के लिए सीमित समय होता है। अगर उन पर हर विषय का आधा-आधा घंटे का गृह कार्य थोप दिया जाए, तो उनके लिए शिक्षा एक बोझ बन जाएगी।
2 – शहरी बच्चों की चुनौती — शहरी क्षेत्र के बच्चों को ट्यूशन के दबाव का सामना करना पड़ता है। ट्यूशन के बाद उनका बाकी समय भी गृह कार्य में ही जाएगा। इससे बच्चों का मानसिक तनाव बढ़ सकता है और उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक गतिविधियों पर भी बुरा असर पड़ सकता है।
3 – गोपनीय आख्या में गृह कार्य का मूल्यांकन — गोपनीय आख्या में गृह कार्य के आधार पर शिक्षकों को अंक देने का प्रावधान एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकता है, जिसमें शिक्षक अधिक से अधिक गृह कार्य देने के लिए बाध्य महसूस करेंगे। इससे पढ़ाई का उद्देश्य सिर्फ प्रदर्शन दिखाना बन जाएगा, न कि बच्चों को समझ और कौशल विकसित करने का अवसर देना। जब शिक्षकों पर गृह कार्य के आधार पर मूल्यांकन का दबाव होगा, तो वे स्वाभाविक रूप से ज्यादा गृह कार्य देने की कोशिश करेंगे, चाहे वह बच्चों के लिए उचित हो या नहीं।
4 – बच्चों पर अतिरिक्त दबाव का असर — ज्यादा गृह कार्य बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उन्हें खेलने, आराम करने और परिवार के साथ समय बिताने का समय नहीं मिलेगा, जो उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है। पढ़ाई के प्रति रुचि कम हो सकती है और वे इसे एक बोझ के रूप में देखने लगेंगे।
विश्लेषण – गृहकार्य को शिक्षकों की गोपनीय आख्या में शामिल करना उचित निर्णय नहीं है। इससे शिक्षक अपने मूल्यांकन की चिंता में बच्चों को अधिक गृह कार्य देंगे। वह पहले की तरह अधिक स्वतंत्रता से गृह कार्य नहीं दे सकेंगे। पहले शिक्षक बच्चे की आवश्यकता और क्षमता के अनुसार गृह कार्य देते थे।
गृह कार्य का उद्देश्य बच्चों की समझ को गहरा करना और उनकी रुचियों को विकसित करना होता है, न कि उसे उनके ऊपर थोपना। इससे बच्चे सीखने से दूर हो सकते हैं और यह शिक्षा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा।
निष्कर्ष– गृहकार्य को शिक्षकों की गोपनीय आख्या में शामिल करना एक अदूरदर्शी कदम है। इससे शिक्षक स्वतंत्रता से और विवेकपूर्ण तरीके से गृह कार्य नहीं दे पाएंगे। बच्चों पर अनावश्यक दबाव बनेगा और वे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकेंगे। गृह कार्य का उद्देश्य बच्चों को सृजनशील, अनुभवात्मक और जिम्मेदार बनाना होना चाहिए, न कि उनके समय और मानसिक स्वास्थ्य पर अतिरिक्त बोझ डालना। इसलिए, इस नियम को गोपनीय आख्या से हटाना बच्चों के हित में होगा, ताकि उनकी पढ़ाई का अनुभव बोझिल होने के बजाय आनंददायक और संतुलित बना रहे।