
वरिष्ठता सरकारी विभागों में महत्वपूर्ण होती है, इसलिए इसके निर्धारण हेतु नियम बने हैं। वरिष्ठता निर्धारण के बेसिक सिद्धांत लगभग हर विभाग में एक जैसे ही होते हैं। उत्तराखंड राज्य में सभी विभागों के लिए एक कॉमन जेष्ठता नियमावली ‘उत्तरांचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ प्रभावी है। अगर अखबार की खबरों और सोशल मीडिया में चर्चा-परिचर्चा को आधार माने, तो वरिष्ठता विवाद की सबसे ज्यादा चर्चा शिक्षा विभाग में दिखायी देती है। और यह विवाद पिछले 12 वर्षों से चला आ रहा है। कोर्ट में मामला है पर बारह वर्ष बाद भी अभी इस पर फैसला नहीं हो पाया है। इसको इस तरह भी देखा जा सकता है कि विभाग से कुछ ऐसी चूक हुयी हैं जिसके कारण मामला अब तक लंबित पड़ा हुआ है। जानकार लोगों का कहना है कि कभी-कभी कुछ ऐसे निर्णय हो जाते हैं जो तत्कालीन नियमावली के प्रावधानों के विपरीत हो जाते हैं। और कालांतर में यही विवाद का कारण बन जाते हैं। शिक्षा विभाग में ऐसा ही हुआ प्रतीत होता है।
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वरिष्ठता विवाद को समाप्त करने हेतु जिस ‘उत्तराखंड राज्य शैक्षिक (अध्यापन संवर्ग) राजपत्रित सेवा नियमावली, 2022’ को लाया गया है। वह भी भविष्य में एक और वरिष्ठता विवाद को जन्म दे सकती है। क्योंकि इस नियमावली का नियम 16 जो जेष्ठता से संबंधित है, वह ‘उत्तरांचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ के प्रावधानों के विपरीत है और खुद में भी विरोधाभाषी है।
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नियम 16 के अनुसार “किसी श्रेणी के पदों पर मौलिक रूप से नियुक्त व्यक्तियों की ज्येष्ठता समय-समय पर यथासंशोधित उत्तराखण्ड तरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली, 2002 के अनुसार अवधारित की जायेगी.
परन्तु सीमित विभागीय परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति की दशा में जेष्ठता आयोग की मैरिट सूची के अनुसार निर्धारित की जायेगी तथा एक प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्या के पद पर पारत्परिक ज्येष्ठता का चयन वर्ष में दोनो माध्यमों से प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्या के पद पर पदोन्नति होने की दशा में आयोग से विभागीय परीक्षा के आधार पर पदोन्नत कार्मिकों को ऊपर रखा जायेगा।”
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विश्लेषण :
1- अब तक की वरिष्ठता निर्धारण से संबंधित सभी नियमावलियों में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि भर्ती सीधी भर्ती और पदोन्नति दोनों से होती है, तो पदोन्नति वाले को प्राथमिकता दी जाएगी। इसका तात्पर्य यह है कि पहला पद पदोन्नति से भरा जाएगा और दूसरा पद सीधी भर्ती से, और यह प्रक्रिया इसी क्रम में जारी रहेगी। इस प्रणाली ने अब तक वरिष्ठता विवादों को नियंत्रित रखने में कुछ हद तक मदद की है, क्योंकि यह पदोन्नति को तरजीह देती है, जो कर्मचारी की वरिष्ठता और सेवा के अनुभव को ध्यान में रखती है।
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2- सरकार ने जो नई नियमावली प्रस्तुत की है, उसके अनुसार सीधी भर्ती से नियुक्त सभी प्रधानाचार्यों को पदोन्नति से नियुक्त प्रधानाचार्यों से वरिष्ठ माना जाएगा। यह प्रावधान न केवल पूर्व में बनाए गए वरिष्ठता नियमों का उलंघन करता है, बल्कि यह पदोन्नति और सीधी भर्ती के बीच शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा। सीधी भर्ती को वरिष्ठता में प्राथमिकता देने से मौजूदा कर्मचारियों की पदोन्नति का महत्व कम हो जाएगा, जो वर्षों की सेवा के बाद उस पद पर आते हैं।
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3- सरकार का यह निर्णय न्याय संगत प्रतीत नहीं होता। पहली बात, यह सीधी भर्ती और पदोन्नति के बीच लंबे समय से स्थापित संतुलन को तोड़ता है। इस संतुलन का उद्देश्य था कि अनुभवी कर्मचारियों की वरिष्ठता को सम्मान मिले और उन्हें उनके अनुभव के आधार पर उच्च पदों पर पदोन्नत किया जाए। नई नियमावली इस उद्देश्य को कमजोर करती है और उन कर्मचारियों के लिए अव्यवहारिक प्रतीत होती है, जिन्होंने वर्षों तक सेवा दी है। वे पीछे रह जाएंगे और उनमें असंतोष और अन्याय की भावना उत्पन्न हो सकती है। उनके लिए, यह निर्णय मनोबल को गिराने वाला हो सकता है, क्योंकि उनके अनुभव और सेवा को नज़रअंदाज़ करके नए कर्मचारियों को उनसे वरिष्ठ माना जाएगा।
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4- इस नई नियमावली से भविष्य में वरिष्ठता विवाद और गहराने की संभावना है। पिछले 12 वर्षों से कोर्ट में लंबित ज्येष्ठता विवाद इस बात का प्रमाण है कि ज्येष्ठता के नियमों में स्पष्टता और न्याय होना कितना जरूरी है।
जब पहले से ही अदालतों में कई वर्षों से ऐसे विवाद लंबित हैं, तो नई नियमावली से इन विवादों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। खासकर उन शिक्षकों के बीच असंतोष बढ़ सकता है जो अपने अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर उच्च पद की उम्मीद रखते हैं। यह निर्णय संगठनात्मक एकता और सामंजस्य को भी प्रभावित कर सकता है, क्योंकि नए और पुराने शिक्षकों के बीच विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
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निष्कर्ष-
वरिष्ठता के विवादों का सरकारी विभागों में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है, खासकर तब जब यह विवाद लंबे समय तक अदालतों में अटका हो, जैसा कि पिछले बारह वर्षों से चल रहे मामले में देखा जा सकता है। इस प्रकार के विवाद न केवल कर्मचारियों की पदोन्नति प्रक्रिया को बाधित करते हैं, बल्कि संगठनात्मक ढांचे और कार्यशैली पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
शिक्षकों का मानना है कि सरकार का नई नियमावली लाकर जिस विवादित मुद्दे को सुलझाना चाहती है वह और उलझ गया है। नई नियमावली के जरिए सीधी भर्ती को प्राथमिकता देना एक उचित कदम नहीं है। इससे न केवल वरिष्ठता विवाद बढ़ सकते हैं, बल्कि यह मौजूदा कर्मचारियों के अधिकारों और अनुभव की भी अनदेखी करता है। यह आवश्यक है कि सरकार इस मुद्दे पर पुनर्विचार करे और सभी संबंधित पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित निर्णय ले, जिससे विवादों का समाधान हो सके और भविष्य में विभाग में एक सुचारु कार्यप्रणाली बनी रहे।