बादशाह अकबर द्वितीय और पेपर लीक.

बादशाह अकबर द्वितीय भी अकबर प्रथम की तरह अपना राज-काज चला रहे थे। वह इतिहास के विद्यार्थी रहे हैं। इसलिए उन्होंने थोड़ा बहुत अकबर को पढ़ा था। उनको मालूम था कि अकबर मुझ से भी कम पढ़ा-लिखा था। और मेरी तरह उसकी भी पढ़ने में रूचि कम ही थी। उसकी सफलता में उसके नवरत्नों का बहुत बड़ा हाथ था। अकबर द्वितीय को लगा ज़ब केवल नौ लोगों अर्थात नवरत्नों की सहायता से, अकबर ने इतिहास में महानता का दर्जा हासिल कर लिया था, तो मैं नौ की जगह सौ लोगों की एक टीम बनाऊंगा और वह ‘सौरत्न’ कहलायेंगे।
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सौरत्नों की एक टीम बना दी गयी। यह सौरत्न अकबर द्वितीय की इतनी जय जयकार करते कि अकबर आत्म मुग्धता की ओर बढ़ चले। इस जय जयकार में इतना नशा होता कि नये बादशाह अकबर खुद को बादलों में उड़ते महसूस करते। प्रजा भी आनंदित थी। बादशाह की ख़ुशी में ही प्रजा की ख़ुशी थी।
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नये बादशाह जहाँ भी दौरा करते, सौरत्न वहाँ की सड़कों को चमका दिया करते। जिस सड़क से बादशाह को गुजरना होता था, उनमें हुए गड्ढों को रातों रात भर दिया जाता था। आस पास सड़क के दोनों किनारों पर पेड़ की टहनियों को तोड़कर पेड़ की तरह रोप दिया जाता। बादशाह को सब हरा-भरा दिखता। बादशाह यह सब देख अपने राज-काज से संतुष्ट थे। एक दिन, एक दौरे के दौरान, अचानक बादशाह की नजर सड़क किनारे पेड़ के नीचे ताश खेलते लोगों पर पड़ गयी।

अकबर ने पूछा – “यह लोग दिन में ताश क्यों खेल रहे हैं? यह कोई काम क्यों नहीं करते?”

“जहाँपनाह, इनको काम की कोई कमी नहीं है। यह अपने आनंद हेतु ताश खेल रहे हैं। यह सम्पन्न लोग हैं, शौक के लिए खेल रहे हैं।” – एक रत्न ने उत्तर दिया।

बादशाह ख़ुश होकर आगे बढ़ गए। तभी एक दुकान में कुछ अतिरिक्त भीड़ देखकर, बादशाह ने जानना चाहा –
“इस दुकान में इतनी भीड़ क्यों है? एक छोटी सी खिड़की खुली है, जबकि इसके दरवाजे बंद हैं।”

“महाराज, यह ‘आनंदालय’ है, आनन्द की दुकान। आम बोल-चाल की भाषा में इसे ‘मदिरालय’ भी कहा जाता है।राज्य में प्रजा के पास आपकी दया से पर्याप्त धन-सम्पति है। उस धन सम्पति का क्या करना? जिससे मौज मस्ती भी नहीं की जा सके। यह लोग आनन्द मनाने हेतु खड़े हैं। लोगों को आनन्द की तलाश में दूर न जाना पड़े, इसलिए आपके नाम से हमने छोटे से छोटे क़स्बों में भी यह ‘आनंदालय’ खोल दिए हैं।” – दूसरे नवरत्न ने जबाब दिया।

बादशाह ने राज्य के लोगों को ज़ब इतनी भारी संख्या में आनन्द लेते देखा तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसू आँसू छलछला आए। उनको लगा कि उनके सौरत्न बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने सौरत्नों के वेतन भत्तों में इजाफा कर दिया।
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एक दिन बादशाह हमेशा की तरह दौरे पर थे। जिस रुट से उनके जाने का कार्यक्रम था। उस रुट पर हजारों की तादात में युवा सड़क में उतर गए। व्यवस्था में लगे रत्नो के हाथ पांव फूल गए। युवा पेपर लीक पर अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। युवा दीवान-ए- पटवारी, दीवान-ए- शिक्षक, दीवान-ए- दरोगा, दीवान-ए- विधान सभा और राज्य द्वारा की गयी विभिन्न भर्तियों में हुयी धांधली की जाँच की मांग कर रहे थे। व्यवस्था का जिम्मा संभाल रहे रत्न ने सिपाहियों को, युवाओं पर लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। कई युवाओं के सिर फूटे, कई के हाथ-पैर। परन्तु युवा तितर-बितर नहीं हो पाए। आनन-फानन में बादशाह के रूट को बदल दिया गया। परन्तु दूर से युवाओं की भीड़ को बादशाह ने देख लिया।

“यह इतने सारे युवा क्यों इकट्ठे हैं? – बादशाह ने जानना चाहा।

“जहाँपनाह, यह वह लोग हैं जो ‘दीन-ए-अपनों को रोजगार’ धर्म का विरोध कर रहे हैं। यह आपके द्वारा चलाये जा रहे इस विश्व प्रसिद्ध धर्म के प्रति अपनी अनास्था प्रकट कर रहे हैं। यह आपकी दयालुता का फायदा उठा रहे हैं। कोई और बादशाह होता तो इनके ऊपर घोड़े चलवा देता।”- एक रत्न ने बादशाह की शंका का समाधान किया।

“परन्तु यह पेपर लीक, पेपर लीक क्यों चिल्ला रहे हैं? क्या सच में पेपर लीक हुआ है? – बादशाह ने फिर सवाल किया।

“जहाँपनाह, हो ही नहीं सकता। आपके राज में ऐसा अन्याय कैसे सम्भव है? – रत्न ने जबाब दिया।

“बीरबल कहाँ है? कल उसको दरबार में तलब करो। कल दरबार में हम इस विषय पर चर्चा चाहते हैं”- बादशाह ने हुक्म दिया।
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जारी….
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