प्रांतीय अधिवेशन – भाग-04

सुशील जी ने अब कोई नया सवाल नहीं किया। पर मैं यह भी नहीं कह सकता कि वह मेरे जबाब से संतुष्ट हुये या नहीं। हमारी चाय समाप्त हो गयी थी। उन दोनों ने मुझसे विदा ली और चले गये। मैंने कहा कल आओगे तो मिलना। मैं थोड़ी देर दुकान में बैठा रहा। क्योंकि मुझे तो कहीं जाना नहीं था। मैंने तय किया कि वापस होटल लौटा जाय।
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मैं होटल के कमरे में लौट आया। अभी मैं धारचूला और देहरादून के वातावरण से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा था। एक अजीब प्रकार की बेचैनी सी हो रही थी। न बिस्तर में लेटा जा रहा था और न ही कुछ और करने का मन कर रहा था। मैं कमरे के बाहर बालकनी में आ गया और बाहर चलती गाड़ियों को देखने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे शहर में कोई आपदा आ गयी हो और लोग जल्दी से जल्दी कहीं और भागना चाहते हों।
धारचूला में जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ मैं महीनों में मुश्किल से कोई गाड़ी देख पाता हूँ, वह भी तब जब मुझे घर जाना होता है। जिस जगह से मैं घर के लिये मैक्स पकड़ता हूँ, वहाँ मुश्किल से एक दिन में तीन-चार मैक्स आती हैं। उन मैक्स का हमारी दिनचर्या से कोई ताल मेल नहीं होता। क्योंकि वह सुबह मार्केट की तरफ चलती हैं और शाम को वापस आती हैं। जब शाम को हमारी स्कूल की छुट्टी होती है, हमको अपने घर के लिये गाड़ी पकड़नी हो, तो यह वापस आ रहे होते हैं। इसलिये छुट्टी के बाद कहीं जा नहीं सकते। जब हमको घर से आने पर सुबह स्कूल पहुंचना होता है, तो यह मार्केट की तरफ आ रहे होते हैं। मतलब सुबह स्कूल पहुंच नहीं सकते। इसलिये मुझे घर आने-जाने में कम से कम चार दिन की सीएल चाहिये होती हैं।
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बाहर दौड़ती हुई गाड़ियों को देखकर मुझे शिक्षकों के लिये स्थानांतरण हेतु बनाया गये कोटिकरण वाले बिंदुओं में आवागमन वाला बिंदु ध्यान आ गया। जिसमें अधिकतम अंक 08 हैं। मतलब देहरादून को 08 नंबर मिले हैं और धारचूला व आस-पास के स्कूलों  को जहाँ मुश्किल से अधिकतम 05 से 10 गाड़ियाँ एक दिन में चलती हैं, उनको 04 अंक दिये गये हैं। 50 प्रतिशत अंक। मतलब हजारों गाड़ियों वाली जगह को 08 अंक (100 प्रतिशत) और  5-10 गाड़ियों को 04 अंक ( 50 प्रतिशत )। पता नहीं किस न्यायप्रिय आदमी ने वह निर्धारण किया होगा। मुझे कभी-कभी बड़ा आश्चर्य होता है कि एक पढ़ा-लिखा जागरूक शिक्षक इस अन्याय के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठता ? या वह व्यवस्था से इतना हताश हो गया कि उसको कुछ भी बदलने का भरोसा नहीं रहा या फिर उसको यह पता नहीं कि अपनी आवाज, अपने विरोध को कहाँ दर्ज करूँ ? जो भी हो पर यह चिन्तनीय है।
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अचानक मेरे फोन ने मैसेज अलर्ट टोन बजाई। मैंने मैसेज देखने के लिए फोन को चेक किया। बीएसएनएल से एक मैसेज आया -हेलो, मैं खाली हूँ, आप से बात करना चाहती हूं, अभी फोन करो 158976 पर। मैं मुस्करा दिया, पता नहीं कंपनी वाले ऐसे मैसेज क्यों भेजते हैं।
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(जारी…)
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