
राज्य में सरकारी कर्मचारियों की जेष्ठता निर्धारण के लिए ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ प्रभावी है। विभाग को नियमावली के अनुसार जेष्ठता का निर्धारण करना चाहिए था। यदि विभाग ने नियमावली के अनुसार जेष्ठता का निर्धारण किया है तो कोर्ट में अपनी बात रखे, उन आधारों और नियमावली, शासनादेशों या तर्कों को कोर्ट में प्रस्तुत करे। जिसके आधार पर उन्होंने वरिष्ठता का निर्धारण किया। जिससे मामले का स्थायी हल निकल सके। यदि पूर्व में जेष्ठता निर्धारण में त्रुटि हुई है। तो अब सही करके पुनः वरिष्ठता सूचि जारी की जा सकती है। यदि नियमावली में कोई कानूनी त्रुटि है या सरकार को लगता है कि वरिष्ठता नियमावली में संसोधन की आवश्यकता है तो ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ को सरकार संसोधित कर सकती है।
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शिक्षकों के सवाल हैं कि-
1- वरिष्ठत्ता का निर्धारण विभाग व सरकार के स्तर पर होना है। इस तुरन्त इस पर कार्यवाही होनी चाहिए।
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2- राज्य में ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ प्रभावी है। फिर वरिष्ठता विवाद हुआ क्यों? क्या इस नियमावली का पालन किया गया है?
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3- राज्य में प्रधानाचार्यों की भर्ती हेतु ‘उत्तराँचल शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग ) सेवा नियमावली, 2006 प्रभावी थी, तो नई नियमावली लाने की क्या आवश्यकता थी?
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निष्कर्ष – शिक्षकों का मानना है कि जेष्ठता विवाद जो कोर्ट में है उसका संबंध ‘उत्तराँचल सरकारी सेवक जेष्ठता नियमावली, 2002’ से है। अगर बदलाव की आवश्यकता थी तो इस नियमावली में थी। वरिष्ठता विवाद के कारण ‘उत्तराँचल शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग ) सेवा नियमावली, 2006 को बदलना औचित्य पूर्ण निर्णय नहीं है। इससे लगभग 27000 शिक्षकों के ‘अवसर की समानता’ (अनुच्छेद -16) के अधिकार का हनन प्रतीत होता है।