
“अब आप लोग आये हो, तो आपके लिए मना करने का सवाल ही नहीं है। टीवी ले जाईये।” – प्रधान जी ने कहा।
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टीवी को दीवाल से निकाल कर, उसके डिब्बे में पैक कर दिया गया। टीवी को ले जाना काफी सरल था। पर दिक्क़त डिश एंटीना को ले जाने में आ गयी। प्रधान जी ने एक पूरे कनस्तर में सीमेंट भर कर एंटीना को फिक्स किया था। वह काफी भारी था। अब समस्या यह आ गयी कि उसको कैसे ले जाँए ? सौम्य खरगोश जी, फिर निराश हो गए। कल रात भर सो न पाने के कारण उनको प्रधान जी के घर पर बैठे-बैठे कई झपकियां आ गयी थी। एक बार तो वह कुर्सी से गिरते-गिरते बचे।
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डिश एंटीना को ले जाने पर चर्चा हुयी। प्रधान जी की धर्मपत्नी ने सुझाव दिया कि वह इस एंटीना को अपने सिर में रखकर स्कूल पहुँचा देगी। दोनों गुरु लोगों को यह उचित महसूस नहीं हो रहा था। पर ना कहने की स्थिति भी उनकी नहीं थी। प्रधान जी ने दोनों के संकोच को समझ लिया था। उन्होंने कहा – “गुरूजी आप लोग चिंता न करें, यह पहुँचा देगी।” सौम्य और सोनू खरगोश कुछ नहीं बोले। उनकी चुप्पी एक प्रकार से हाँ ही थी।
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प्रधान जी की धर्मपत्नी ने डिश को कनस्तर सहित सिर में रखा। और स्कूल के लिए चल दी। साथ में सौम्य व सोनू खरगोश टीवी लिए साथ में चलने लगे। रास्ते में सोनू खरगोश के मन में आया कि प्रधान जी की पत्नि की, सिर में डिश एंटीना सहित, एक फोटो लेकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डाल दूँ। बहुत सारे व्यू मिल जायेंगे। पर ऐसा करना उनको उचित नहीं लगा। केवल वह उस स्थिति को सोचकर मन ही मन मुस्करा दिए। रास्ते में प्रधान जी की धर्मपत्नी के सिर में जो भी डिश देखता। उसको यह माजरा समझ नहीं आता। फिर वह सवाल करते कि कहाँ ले जा रहे हो? फिर उनको पूरी कहानी बतानी पड़ती। पूरे तीन किमी0 के सफर में कम से कम 20 गाँव वाले मिले। सबने एक ही सवाल पूछा। सबको एक ही कहानी सुनानी पड़ी।
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पूरे रास्ते में तीन बार, डिस को उतार कर, बैठकर सुस्ताना पड़ा। करीब एक घंटे बाद वह डिश व टीवी को लेकर विद्यालय के नजदीक पहुंचे। अब कौतुहल की बारी बच्चों की थी। वह भी इस दृश्य को देखने के लिए खिड़की व दरवाजों में खड़े हो गए और झाँक झाँक कर इस दृश्य का आनन्द ले रहे थे। ज़ब डिश व टीवी स्कूल में पहुँच गया, तो सौम्य खरगोश ने राहत की सांस ली। वह प्रधान जी की धर्मपत्नी को अब तक लगभग 20 बार धन्यवाद बोल चुके थे।
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विद्यालय में बच्चे ज्यादा थे। विद्यालय में सभी कमरे बहुत छोटे थे। कोई भी कमरा ऐसा नहीं था कि जिसमें सभी बच्चे एक साथ बैठ सकें। तय हुआ कि बच्चों को प्रार्थना स्थल पर ही बैठाया जाएगा और टीवी सामने बने मंच पर रखा जाएगा। जहाँ पर पिछले साल रेडियो रखा गया था। साथ में यह भी तय हुआ कि क्योंकि बच्चे बाहर ही बैठेंगे, इसलिए टीवी भी सुबह जल्दी आकर ही इनस्टॉल करना पड़ेगा।
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सौम्य खरगोश चिंता के कारण सुबह आठ बजे ही स्कूल पहुँच गए। ग्यारह बजे प्रसारण से पहले टीवी इनस्टॉल करना था। अभी बच्चे या स्कूल का अन्य कोई भी स्टॉफ स्कूल नहीं पहुंचा था। स्कूल नौ बजे लगता है। इसलिए कोई पहले आएगा भी क्यों। और वैसे भी स्कूल बस्ती से तीन किमी की दूरी पर जंगल के बीच में था। इसलिए किसी के पहले आने की संभावना कम ही रहती है। सौम्य खरगोश ने खुद ही कमरे से टीवी रखने के लिए मेज बाहर निकाल कर मंच में रखी। डिस एंटीना को उन्होंने कमरे से बाहर लाने की कोशिश की तो उनसे वह उठा ही नहीं। वह एक भरे गैस सिलेंडर से भी भारी था। उन्होंने प्रधान जी की धर्मपत्नी को एक बार फिर मन मन धन्यवाद कहा। बेचारी इतना भारी, पैदल तीन किलोमीटर, कैसे लायी होगी। जब सौम्य जी से डिस एंटीना उठा नहीं, तो वह उसको घसीटते-घसीटते मंच तक ले आये।
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ज़ब वह टीवी लेकर बाहर आये तो एक समस्या खड़ी हो गयी। घर में तो टीवी दीवार पर लटका था। उसको यहाँ मेज पर कैसे टिकायें? क्योंकि टीवी का मेज पर रखने वाला स्टैंड था ही नहीं। अब टीवी को मेज पर कैसे टिकाया जाय? सौम्य खरगोश जी का चेहरा फिर मुरझा गया। और वह कुर्सी होते हुए भी जमीन में बैठ गए।
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जारी….
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