परीक्षा पर चर्चा…भाग -01

उत्तरवन में दो दिन बाद विभाग द्वारा ‘परीक्षा पर चर्चा’ का सीधा प्रसारण टीवी के माध्यम से बच्चों को दिखाया जाना प्रस्तावित है। प्रिंसिपल साहब ने परीक्षा पर चर्चा की सम्पूर्ण व्यवस्था का आदेश सौम्य खरगोश के नाम किया हुआ था। श्रव्य-दृश्य का प्रभार भी सौम्य खरगोश के पास ही था। गतवर्षों में जब परीक्षा पर चर्चा का आयोजन हुआ था। तब रेडियो से काम चल गया था। इस बार प्रिंसिपल साहब नये आ गए थे। उनका आदेश था कि टीवी होना जरूरी है। सौम्य खरगोश जी ने साहब से निवेदन किया कि टीवी की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है। पर साहब ने साफ हिदायत दे दी कि टीवी की व्यवस्था होनी ही चाहिए, मैं कुछ नहीं जानता। सौम्य खरगोश ने साहब से फिर निवेदन किया कि साहब टीवी की व्यवस्था आप कर दें। लगा मैं दूँगा। साहब ने उनके निवेदन को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कह दिया कि व्यवस्था तो आपको ही करनी पड़ेगी, चाहे जहाँ से करो। आपके पास श्रव्य-दृश्य का प्रभार है और आपके नाम मैंने आदेश भी कर दिया है, अब आप जानो। आदेश का अनुपालन नहीं होगा तो नियमानुसार कार्यवाही होगी।
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सौम्य खरगोश जी, परेशान हो गए। स्कूल में टीवी है नहीं। खुद के पास भी उनके टीवी नहीं है। सभी साथी अध्यापक बाहर से हैं। किसी ने भी अपने पास टीवी नहीं रखा है। सब अध्यापकों ने गाँव में एक-एक कमरे किराये पर ले रखे हैं। एक किनारे पर सबकी एक-एक फोल्डिंग चारपाई पड़ी हैं, और दूसरे किनारे पर गैस के चूल्हे रखे हैं। टीवी अगर रखना भी चाहें तो कहाँ रखते?
सभी इस दुर्गम स्थान में समय काट रहे हैं। ज्यादा सामान वह इसलिए भी नहीं जोड़ते कि क्या पता अगले साल ट्रांसफर हो जाय। यह अलग बात है कि सौम्य खरगोश व अन्य अधिकांश अध्यापकों को अगले साल, अगले साल, ट्रांसफर की सोचते-सोचते 20-25 साल से अधिक हो गए हैं।
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टीवी कहाँ से आये? सौम्य खरगोश इस तनाव में पूरी रात सो नहीं पाए। तनाव इतना ज्यादा था कि शाम को सब्जी में नमक तो डाल दिया था, पर मसाला डालना भूल गए। ज़ब खाने को बैठे तो अपनी इस भूल का पता चला। जैसे-तैसे उन्होंने एक रोटी निगली।
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आस पास कोई टीवी की दुकान ही होती तो खरीद लेते। बाजार भी कम से कम 150 किमी0 दूर है। रात खुल गयी थी। पर सवाल अब भी बना हुआ था कि टीवी कहाँ से लाया जाय? सौम्य खरगोश ने सोनू खरगोश से अपनी व्यथा सुनाई। सोनू खरगोश भी इसी विद्यालय में अध्यापक हैं। उनको इस विद्यालय में 30 साल हो गए हैं। वह ऐसे अध्यापक हैं, जिन्होंने जो बच्चे इस समय पढ़ रहे हैं, उनके पापा और दादा को भी पढ़ाया है। गाँव के प्रधान उनके शुरू के पढ़ाये विधार्थी थे। तब के लोग अध्यापकों का बड़ा सम्मान करते थे। उनका सम्मान, सोनू खरगोश जी के प्रति आज भी बदस्तूर जारी है। प्रधान जी के घर पर टीवी था। प्रधान जी का घर स्कूल से तीन किलोमीटर दूर खड़ी चढाई पर था। सौम्य और सोनू खरगोश जी, साथ-साथ गाँव के प्रधान जी के घर की तरफ चल दिए।
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प्रधान जी, दोनों के अचानक, इस आगमन से शंकित हो गए। प्रधान जी ने दोनों का चाय-पानी से सत्कार किया। प्रधान जी को शंका हो रही थी कि उनके नाती ने, जो कक्षा 10 का विधार्थी है, जरूर कुछ बड़ा कारनामा कर दिया है। जिसकी शिकायत करने दोनों गुरु लोग घर आये हैं।

“गुरूजी, हमने आपको पहले ही कह रखा है कि भले ही सरकार ने बच्चों को न मारने-पीटने का कानून बनाया है। पर अगर हमारा नाती, कभी स्कूल में कोई गलती करता है तो उसको चटका देना। हम कुछ नहीं बोलेंगे।” – प्रधान जी ने कहा।

“नहीं, आपका नाती तो अच्छा लड़का है। उसने कोई गलती नहीं की है। दरअसल हमको आपके टीवी की जरूरत है। टीवी से एक कार्यक्रम ‘परीक्षा पर चर्चा’ का प्रसारण होना है। उसको स्कूल में बच्चों को दिखाया जाना है।” – सोनू खरगोश जी ने प्रधान जी को जानकारी दी।

“गुरूजी, जब कार्यक्रम टीवी पर ही आना है तो बच्चे अपने-अपने घर से भी तो देख सकते हैं?” – प्रधान जी ने कहा।

“आप की बात भी सही है। परन्तु सभी बच्चे स्कूल में एक साथ देखेंगे, तो ज्यादा अच्छा लगेगा। और हम लोगों के लिए विभागीय आदेश भी स्कूल में दिखाने के हैं। टीवी है नहीं। स्कूल में कैसे दिखाएंगे। सरकारी आदेशों का पालन तो करना ही पड़ता है।” – सोनू खरगोश ने समझाया।
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जारी….
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