द्विभाषी किताबें

कुछ समय पहले NEP 2020 की भावना के अनुरूप छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए बस्ते का बोझ कम करने का आदेश एक आदेश आया है। हर कक्षा के लिए बस्ते के वजन की एक निश्चित सीमा तय की गई है, जिससे छात्र अपने बस्ते के भार से मुक्त होकर स्वस्थ वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर सकें। यह निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि छात्रों के लिए बढ़ता बस्ता न केवल शारीरिक रूप से हानिकारक है, बल्कि उनके मानसिक तनाव को भी बढ़ाता है।

बच्चों का शारीरिक विकास इस उम्र में सबसे महत्वपूर्ण होता है, और भारी बस्ता उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। शोध बताते हैं कि अत्यधिक बस्ते का भार कंधों, रीढ़ की हड्डी, और पीठ पर दबाव डालता है, जिससे उनकी शारीरिक संरचना पर दीर्घकालिक असर हो सकता है। इसलिए, सरकार द्वारा प्रत्येक कक्षा के लिए बस्ते का एक निश्चित वजन तय किया जाना, बच्चों की भलाई के लिए उठाया गया एक स्वागतयोग्य कदम है।

इसी बीच एक और निर्णय भी लिया गया है कि विज्ञान की किताबों को द्विभाषीय बनाया जाय। जिसमें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सामग्री शामिल है। परंतु यह निर्णय बस्ते का बोझ कम करने के हालिया आदेश के विपरीत है। द्विभाषीय किताबें बच्चों के बस्ते के भार को कम करने की बजाय बढ़ाएंगी ही। यह निर्णय भी उतनी ही जल्दीबाज़ी में लिया गया है, जितनी जल्दबाजी में पूर्व में यह निर्णय लिया गया था कि विज्ञान विषय को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जाय। जब यह निर्णय लिया गया था। तब भी शिक्षाविदों व शिक्षकों के एक बड़े वर्ग ने इस निर्णय को अव्यहारिक बताया था। हिन्दी माध्यम के बच्चों के लिए दोहरा संकट खड़ा हो गया। विज्ञान समझने से पहले उनको अंग्रेजी भाषा समझने का दबाब होता था और उसके बाद विज्ञान के कंसेप्ट समझने की परेशानी अलग होती थी। दो-तीन साल बाद इस निर्णय को आंशिक रूप से बदल दिया गया। एक नया आदेश आया कि अब विज्ञान को केवल अंग्रेजी में नहीं, अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में पढ़ाया जा सकता है।

NEP 2020 का एक प्रमुख उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को समग्र और सुगम बनाना है, जिसमें बच्चों का मानसिक, शारीरिक और अकादमिक विकास एकीकृत तरीके से हो सके। NEP 2020 भी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को बढ़ावा देती है और छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की बात करती है। बच्चों का बस्ता हल्का करने का निर्देश भी इसी नीति का हिस्सा है। लेकिन द्विभाषीय किताबें इस लक्ष्य के विपरीत काम करती हैं, क्योंकि यह बस्ते का बोझ बढ़ाने के साथ-साथ छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक बोझ भी डालती हैं। विज्ञान जैसे विषय में भाषा की बाधा समझने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

एक शिक्षक के रूप में, हमारा प्रयास होता है कि बच्चों को सहजता से ज्ञान प्राप्त हो और वे अपने विषय को पूरी गहराई से समझ सकें। यदि विज्ञान को हिंदी में समझाना बच्चों के लिए अधिक सरल है, तो उस माध्यम में पढ़ाई करवाने से उनका अधिगम बेहतर होगा।द्विभाषीय किताबें बच्चों को ज्ञान से जोड़ने की बजाय एक अनावश्यक बोझ डालने का कार्य कर रही हैं। इससे बस्ते का बोझ कम करने का उद्देश्य धूमिल हो जाता है।

सुझाव — शायद बेहतर यह हो कि बच्चों से पूछा जाय कि वह विज्ञान की किताब कौन सी भाषा (हिन्दी या अंग्रेजी) में चाहते हैं। किताबें केवल एक भाषा में ही छापी जांय। जिस बच्चे को अंग्रेजी भाषा में किताब चाहिए, उसको अंग्रेजी वाली किताब दी जाय। और जिसको हिन्दी भाषा में चाहिए, उसको हिन्दी भाषा में छपी किताब दे दी जाय। ताकि बच्चों का बस्ता हल्का रह सके। बस्ते का बोझ कम करना महत्वपूर्ण प्राथमिकता होनी चाहिए, और इसके लिए केवल एक भाषा में किताबें देना एक सार्थक कदम हो सकता है।

निष्कर्ष– सरकार ने बच्चों के हित में बस्ते का बोझ कम करने का आदेश दिया है, जो स्वागत योग्य है। लेकिन द्विभाषीय किताबों का प्रावधान इसी उद्देश्य के खिलाफ प्रतीत होता है। यदि शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य बच्चों को बेहतर सीखने का अनुभव प्रदान करना है, तो हमें उनके सीखने के अनुभव को हल्का और सरल बनाना चाहिए, ताकि बच्चे अपनी रुचि और उत्साह के साथ विज्ञान और अन्य विषयों का अध्ययन कर सकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *