
अभी हाल में आया एक आदेश, जो तकनीकी के प्रयोग से संबंधित है, बहस के केंद्र में है। आदेश के अनुसार अब ‘स्विफ्ट चैट’ जो एक मोबाइल एप्लीकेशन है, उसके द्वारा शिक्षकों की लोकेशन ट्रैक की जाएगी। यह कितना उचित/अनुचित है? आज की पोस्ट में इसकी चर्चा करेंगे।
पक्ष-विपक्ष में राय बनाने से पहले कुछ प्रमुख बिन्दु हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है-
1- निजी फोन का उपयोग – शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों से उनके व्यक्तिगत फोन पर विभागीय ऐप इंस्टॉल करने और लोकेशन ट्रैकिंग जैसे प्रावधानों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है/ जा रही है। यह उचित नहीं है। क्या इसे शिक्षकों की निजी स्वतंत्रता और उनके संसाधनों का अनुचित उपयोग नहीं माना जाना चाहिए ?
2- डेटा और उपकरण का खर्च_ – शिक्षकों को न तो विभागीय फोन प्रदान किए जाते हैं और न ही डेटा शुल्क के लिए कोई आर्थिक सहायता दी जाती है। कोविड काल व उसके बाद अब तक, ऑनलाइन क्लासेज व अन्य विभागीय कार्यों में, शिक्षकों ने विभाग का सैकड़ों करोड़ रुपया बचाया है। कई अन्य सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को फोन भत्ता और संसाधन दिए जाते हैं। यह असमानता एक विचारणीय विषय है।
3- निजता का अधिकार – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, हर नागरिक को निजता का अधिकार प्राप्त है। कार्यावधि में ही सही, लोकेशन ट्रैकिंग और अन्य डेटा का उपयोग शिक्षकों की सहमति के बिना करना, एक प्रकार से उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
4- बायोमेट्रिक उपस्थिति के बावजूद ऐप की आवश्यकता_ – हर स्कूल में बायोमेट्रिक मशीन से उपस्थिति अनिवार्य है। बड़े-बड़े निजी और सार्वजनिक संस्थानों में बायोमेट्रिक मशीन द्वारा ही उपस्थिति ली जाती है। अभी हाल ही में मुख्य सचिव महोदय ने भी सभी विभागों में बायोमेट्रिक उपस्थिति को अनिवार्य किया है। इसका मतलब यह हुआ कि बायोमेट्रिक मशीन एक भरोसेमंद उपाय है। जब शिक्षकों की उपस्थिति पहले से ही बायोमेट्रिक मशीन के माध्यम से दर्ज की जा रही है, तो अतिरिक्त ऐप का उपयोग क्यों आवश्यक है? यह न केवल तकनीकी संसाधनों की ओवरडोज है, बल्कि शिक्षकों पर अतिरिक्त बोझ भी डालता है।
5- अन्य विभागों में यह प्रावधान क्यों नहीं?- कई लोग यह तर्क दे रहे हैं कि जब आप ईमानदार हो और स्कूल में रहते हो, तो विरोध क्यों कर रहे हो? शिक्षक संघो द्वारा जब विभाग के इस निर्णय का विरोध किया गया तो आम जनता में यह सन्देश जा रहा है कि शिक्षक स्कूल नहीं जाना चाहते, इसलिए विरोध कर रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं है।यह ध्यान देने योग्य है कि लोकेशन ट्रैकिंग ऐप का प्रावधान केवल शिक्षकों के लिए लागू किया गया है। अन्य विभागों के कर्मचारियों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। इसलिए शिक्षक में रोष होना स्वाभाविक है। केवल शिक्षकों के लिए इस प्रकार के आदेश निकालने के निहितार्थ समझने की आवश्यकता है। उक्त आदेश भेदभाव पूर्ण है। शिक्षकों के प्रति असम्मान और उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाता है।
समाधान क्या है?
विभाग उपस्थिति दर्ज करने के लिए तीनों माध्यमों – उपस्थिति पंजिका, बायोमेट्रिक मशीन और ‘स्विफ्ट चैट’ में से केवल एक को चुने। एक ही कार्य के लिए तीन माध्यमों का उपयोग न केवल अनावश्यक है, बल्कि शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव भी डालता है।
यदि ‘स्विफ्ट चैट’ को प्राथमिकता दी जाती है, तो बायोमेट्रिक और मैनुअल पंजिका की व्यवस्था समाप्त कर दी जानी चाहिए। साथ ही, शिक्षकों को विभागीय कार्यों के लिए अलग से फोन और डेटा प्लान उपलब्ध कराना चाहिए। यदि यह व्यावहारिक न हो, तो डेटा और फोन उपयोग के लिए मासिक भत्ता दिया जाना चाहिए।
‘स्विफ्ट चैट’ ऐप के माध्यम से डेटा संग्रह की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और यह गारंटी दी जाए कि शिक्षकों का कोई भी निजी डेटा विभागीय उद्देश्यों के अलावा उपयोग नहीं होगा। यदि किसी तकनीकी समस्या के कारण डेटा की चोरी होती है, तो उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह विभाग की होनी चाहिए।
निष्कर्ष- अधिकांश शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं। हम सबका यह दायित्व बनता है कि शिक्षकों के अधिकारों और उनकी निजता की रक्षा करें। शिक्षक समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाला स्तंभ है। उसके कार्यों की गुणवत्ता और समर्पण ही एक सशक्त राष्ट्र का आधार बनते हैं। विभागीय प्रावधानों को लागू करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे शिक्षकों की गरिमा और स्वतंत्रता को आघात न पहुंचाएं। इसके अतिरिक्त, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लोकेशन ट्रैकिंग का जो नियम शिक्षकों पर लागू किए जा रहा है, क्या वह अन्य विभागों के कर्मचारियों पर भी समान रूप से लागू है? ताकि शिक्षकों को भेदभाव का सामना न करना पड़े। और उनके मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।