एलटी से प्रवक्ता पद में पदोन्नति।

विगत कई वर्षों से एलटी के साथी अपनी पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। पदोन्नति न होने का कारण वरिष्ठता विवाद बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि 90-91 में तदर्थ नियुक्त कुछ साथी अपनी वरिष्ठता हेतु माननीय उच्च न्यायालय गए हैं। इसलिए पदोन्नति नहीं हो पा रही है। पर वरिष्ठता का विवाद एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति को प्रभावित करता नहीं दिख रहा है। क्यों?
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1- एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति, तकनीकी तौर पर पदोन्नति है ही नहीं। पदोन्नति का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत वरिष्ठता का सिद्धांत होता है। क्योंकि वरिष्ठता का सिद्धांत एक वस्तुनिष्ठ सिद्धांत है, इसलिए अधिकांश जगह इसी को अपनाया जाता है। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में पदोन्नति हेतु वरिष्ठता के सिद्धांत को ही अपनाया गया है। जब पदोन्नति का आधार वरिष्ठता निर्धारित है, तो नियमानुसार वरिष्ठ शिक्षक की पदोन्नति पहले होनी चाहिए। (जैसे प्रधानाध्यापक व प्रधानाचार्य के मामले में होता है ) परन्तु एलटी से प्रवक्ता के मामले में इस सिद्धांत का अनुसरण नहीं किया जाता है। इसलिए एलटी से प्रवक्ता को पदोन्नति नहीं माना जाना चाहिए।
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एलटी से प्रवक्ता पद पर विज्ञान विषयों में, मानविकी विषयों की तुलना में, काफी कनिष्ठ शिक्षकों की पदोन्नति पहले ही हो जाती है। जो वरिष्ठता के सिद्धांत के प्रतिकूल है। इसलिए इसको पदोन्नति मानना उचित नहीं है। अगर यह पदोन्नति होती तो मानविकी विषय वाले, विज्ञान विषय वालों के खिलाफ, कोर्ट नहीं चले जाते ? जब एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति को तकनीकी तौर पर पदोन्नति कहा ही नहीं जा सकता, फिर माननीय उच्च न्यायालय का स्टे एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति में लागू नहीं होना चाहिए।
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2- थोड़ी देर के लिए हम एलटी से प्रवक्ता को पदोन्नति मान भी लें, तो भी एलटी से प्रवक्ता पद पर पदोन्नति का एलटी के शिक्षकों की वरिष्ठता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पदोन्नति के पश्चात् भी उनकी परस्पर जेष्ठता वही रहेगी जो एलटी में थी।
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उत्तर प्रदेश सरकारी सेवा ज्येष्ठता नियमावली, 1991 व उत्तराँचल सरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली, 2002 के नियम 06 के अनुसार जब एक पोषक संवर्ग से पदोन्नति द्वारा नियुक्तियां की जाती हैं, तो उनकी परस्पर जेष्ठता वही रहती है जो पोषक संवर्ग में थी। चाहे पोषक संवर्ग में ज्येष्ठ व्यक्ति की पदोन्नति कनिष्ठ से बाद में क्यों न हो।
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इसको इस उदाहरण से समझते हैं – माना ‘X’ की नियुक्ति 1998 में सीधी भर्ती द्वारा एलटी सामान्य के पद पर हुई तथा ‘Y’ की नियुक्ति 2011 में सीधी भर्ती द्वारा एलटी विज्ञान के पद पर हुई। इसका अर्थ है ‘Y’ कनिष्ठ है।
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वरिष्ठता के सिद्धांतानुसार ‘X’ की पदोन्नति पहले होनी चाहिए। परन्तु ‘Y’ की पदोन्नति प्रवक्ता रसायन विज्ञान के पद पर 2015 में ( पहले ) हो गयी। ‘X’ की पदोन्नति 2023 में ( Y से 08 वर्ष बाद ) प्रवक्ता अर्थशास्त्र या अन्य विषय में होती है। तो पदोन्नति के पश्चात् ‘X’ अपनी मूल जेष्ठता प्राप्त कर लेगा। और वह पुनः ‘Y’ से जेष्ठ माना जाएगा। जबकि उसकी पदोन्नति ‘Y’ से आठ साल बाद हुई।
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3- वरिष्ठता के मामले में माननीय कोर्ट द्वारा या विभाग द्वारा दो ही निर्णय दिये जा सकते हैं। 90-91 में तदर्थ नियुक्त साथियों के पक्ष में या विपक्ष में। अगर निर्णय उनके विपक्ष में रहता है, तो तब यथास्थिति बनी रहेगी और इस निर्णय से प्रवक्ता के पदों पर होने वाली पदोन्नति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर निर्णय उनके पक्ष में हुआ। तब भी वह प्रवक्ता नहीं बल्कि प्रधानाचार्य या प्रधानाध्यापक बनेगें। ऐसे में भी प्रवक्ता पदोन्नति पर उक्त निर्णय का कोई असर नहीं होगा।
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विश्लेषण – जब प्रवक्ता पद पर पदोन्नति से वरिष्ठता पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा है, तो फिर एलटी से प्रवक्ता पदोन्नति करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। क्योंकि माननीय कोर्ट में वरिष्ठता का ही मामला गया है। एलटी से प्रवक्ता में पदोन्नति से कोई वरिष्ठता प्रभावित नहीं हो रही है। इस तथ्य क़ो माननीय कोर्ट के सम्मुख रखा जा सकता है।
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