इस प्यार को क्या नाम दोगे..?

एक बार फिर पूरा उत्तरवन हंगामे की चपेट में है। जब से इस कम्बक्त फोन पर कैमरा क्या आया, सब पत्रकार बन बैठे हैं। इनका काम है किसी की बात को तोड़ना और मरोड़ना। अब यह कह रहे हैं कि फूलचंद हाथी ने उत्तरवन की जंगल सभा में ‘साले माउन्टेनी’ कहा। कोई इनसे पूछे कि आप जंगल सभा में गए थे क्या? भाई वहाँ उतने सारे एनिमल्स थे किसी ने सुना नहीं और आपने सुन लिया। दिन भर तो हेडफोन कान में घुसा रखा है। उससे सुनाई तो देता नहीं। कान में सुंस्याट होता रहता है। उस सुंस्याट में आपके कान बज गए। वह तो कह रहे थे कि ‘सारे माउन्टेनी’।

वह सही तो कह रहे थे कि यह ‘सारे माउन्टेनीयों’ का जंगल नहीं है। अब भाई, क्या गलत कहा? सभी माउन्टेनी तो सुन्दरवन में आ गए। इसलिए अधिकांश एनिमल्स को बुरा भी नहीं लग रहा है। क्योंकि वह अब माउन्टेनी रहे भी नहीं। जरा उनको माउन्टेनी बोल कर तो दिखाओ। वह गीत गाने लग जाएंगे “मुझको ‘माउन्टेनी-माउन्टेनी’ मत बोलो… मैं तो सुन्दरवन वाला हूँ…”
अब ‘सारे’ बोला या ‘साले’ क्या फर्क पड़ता है? अब माउन्टेनी तो कुछ गोणी-बांदर ही रह गए हैं। और भी कोई रह रहा है तो उसकी वह जाने।

पहले यह बताओ कि तुम रह क्यों रहे हो वहाँ? ‘पलायन आयोग’ भी बना दिया है फिर भी आप पलायन करने को तैयार नहीं हो? ‘ ‘परिसीमन आयोग’ भी बना दिया है, फिर भी वहीँ जमे हो? तुमने अपने ‘पुंगड़े-पाटे’ अभी तक किसी बाहर वाले को बेचे नहीं हैं? तो गाली खाने के काम तो खुद ही कर रहे हो। अब इसमें ‘जंगल सभा’ क्या करे? अगर तुम भी हमारी तरह पलायन कर चुके होते तो तुम्हारी भी ‘नाक नहीं लगती’।

देखो भाई, बेफालतू ‘यूट्यूब गिरी’ मत दिखाओ। माननीय फूलचंद हाथी जी को नाहक बदनाम मत कीजिए। वह कुछ भी बोलें उनके हर बोल को फूलों की तरह ग्रहण कीजिए। वह लगातार चार बार जीतकर, जनता के प्यार से जंगल सभा पहुँचे हैं। कुछ तो बात होगी? इस प्यार को क्या नाम दोगे? सनद रहे वह तुम ‘सारे माउन्टेनीयों’ के वोट से नहीं जीते हैं, है न?

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