प्रांतीय अधिवेशन – भाग-04

सुशील जी ने अब कोई नया सवाल नहीं किया। पर मैं यह भी नहीं कह सकता कि वह मेरे जबाब से संतुष्ट हुये या नहीं। हमारी चाय समाप्त हो गयी थी। उन दोनों ने मुझसे विदा ली और चले गये। मैंने कहा कल आओगे तो मिलना। मैं थोड़ी देर दुकान में बैठा रहा। क्योंकि मुझे तो कहीं जाना नहीं था। मैंने तय किया कि वापस होटल लौटा जाय।……….मैं होटल के कमरे में लौट आया। अभी मैं धारचूला और देहरादून के वातावरण से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा था। एक अजीब प्रकार की बेचैनी सी हो रही थी। न बिस्तर में लेटा जा रहा था और न ही कुछ और करने का मन कर रहा था। मैं कमरे के बाहर बालकनी में आ गया और बाहर चलती गाड़ियों को देखने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे शहर में कोई आपदा आ गयी हो और लोग जल्दी से जल्दी कहीं […]

प्रांतीय अधिवेशन – भाग-02

एक सबसे अधिक पढ़ा लिखा समाज भी चुनाव के लिए संवर्गवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई भतीजावाद, मीट-मुर्गा और दारूवाद में फंसा है। आजकल हर स्तर के चुनाव में यही सब वाद चलते हैं। कभी-कभी लगता है कि अगर इन सब वादों के लिए सम्मिलित रूप से एक शब्द की रचना करनी हो तो ‘चुनाव’ को उस शब्द के रूप में मान्यता दे देनी चाहिए।

प्रांतीय अधिवेशन भाग-01

काशीपुर के बाद मेरे व्हट्स ऐप में कोई नोटिफिकेशन नहीं दिख रहा था। मुझे लगा कि नेटवर्क प्रॉब्लम होगी। अफजलगढ़ पहुंचने के बाद भी जब कोई नोटफिकेशन नहीं दिखा तो मुझे संदेह हुआ कि यह कुछ और प्रॉब्लम है। नेटवर्क बार पूरे दिख रहे थे। मैंने वही टोटका अपनाया जो आप भी कई बार आजमा चुके होंगे। ऐसी स्थिति में मोबाइल को स्विच ऑफ किया और फिर ऑन कर दिया। जैसे ही नेट ऑन हुआ लगभग डेढ़ सौ के करीब नोटिफिकेशन मेरा इंतजार कर रहे थे। व्हट्स ऐप खोला तो चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। छुट्टी पर असमंजस की स्थिति बन गयी थी। महानिदेशक का आदेश देखा तो थोड़ी देर मैं भी असमंजस में पड़ गया। मुझे लगा कि मुझे गाड़ी से उतर लेना चाहिये और वापस लौट जाना चाहिये। मैंने तय किया कि आगे जो भी स्टेशन आयेगा, वहीं उतर जाऊंगा। गाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। […]