
अकबर द्वितीय के दरबारियों ने शिक्षा की बेहतरी के लिए कुछ लोगों को अटैचमेंट पर रखा था। अक्सर जिसकी भी दरबारियों से सेटिंग रहती, वह राजधानी ‘इच्छापुर सीकरी’ में किसी न किसी ‘मनसब’ में अटैच कर लिए जाते। अकबर द्वितीय खुद कम पढ़े लिखे थे। लेकिन शिक्षा व्यवस्था को लेकर वह चिंतित दिखते थे। अन्य विभागों में क्या हो रहा है, इस पर वह ज्यादा ध्यान नहीं देते थे, पर शिक्षा विभाग पर उनका विशेष फोकस रहता था।
जिन भी लोगों को दरबार में अटैच किया जाता था, उनको ‘साथी’ कहा जाता था। उन्होंने शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी ‘न्यूरत्न’ को दे रखी थी। वही ‘दरोगा-ए-शिक्षा’ भी थे। एक दिन उन्होंने न्यूरत्न को कहा कि मैं कल साथियों से मिलना चाहता हूँ। कल कुछ शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा भी हो जाएगी।
दूसरे दिन न्यूरत्न सभी साथियों को लेकर समय से पहले दरबार में हाजिर हो गये थे। बादशाह अकबर भी कुछ समय पश्चात दरबार में पहुँच गये। अपने सिंहासन में बैठने के बाद उन्होने कहा – “आप सभी गुरु लोग हो, मैं आपका सम्मान करता हूँ। मैं साम्राज्य की शिक्षा व्यवस्था को श्रेष्ठतम करना चाहता हूँ। आप कुछ उपाय सुझाइये?”
एक साथी खड़े होकर बोले – “महाराज शिक्षक स्कूल नहीं जाते, इसलिए शिक्षा व्यवस्था खराब हो गयी है।”
“जी महाराज, यह सच कह रहे हैं।”- अन्य साथियों ने भी बात का समर्थन किया।
शुक्र है दरबार में किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो? आपको भी तो स्कूल में होना चाहिए ? आपको यहाँ किसने अटैच किया?
“अच्छा, इसका क्या हल हो सकता है?” – अकबर ने पूछा।
“महाराज! पिछले एक वर्ष के चिंतन मनन से हमने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए एक उपाय ढूँढा है। हमने इसमें तकनीकी को शामिल किया है?” – न्यूरत्न ने जबाब दिया।
“वाह! इससे क्या होगा? – अकबर ने जानना चाहा।
“महाराज, इससे हम शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति को प्रतिदिन ट्रैक कर पाएंगे। हमको पता चल जाएगा कि कितने शिक्षक और बच्चे उपस्थित हैं और कितने अनुपस्थित।” – न्यूरत्न ने बात को आगे बढ़ाया।
“वाह! लेकिन यह होगा कैसे?” – अकबर ने उत्सुकता से पूछा।
“महाराज इस हेतु हमने एक ऐप बनवाया है। उससे हम प्रतिदिन उपस्थिति को आपके सामने दरबार में रख देंगे। आप उसको देख सकेंगे।”- न्यूरत्न ने स्पष्ट किया।
“यह तो बहुत ही अच्छा विचार है। परन्तु एक बार मैं बीरबल से भी जानना चाहता हूँ। कि वह इस बारे में क्या सोचते हैं।”- अकबर ने कहा।
बीरबल चुपचाप एक किनारे बैठकर उक्त चर्चा को सुन रहे थे।
“महाराज, गुस्ताखी माफ हो। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि प्रतिदिन ऑनलाइन उपस्थिति से शिक्षा की गुणवत्ता में क्या और कैसे सुधार होगा?” – बीरबल ने कहा।
……
जारी
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